बच्चों द्वारा इंटरनेट का उपयोग और साइबर क्राइम | Internet Dangerous ❌ for Student | Lesson-9|

बच्चों द्वारा इंटरनेट का उपयोग और साइबर क्राइम |Internet Dangerous  for Student|


| Lesson-9|


इंटरनेट का उपयोग :-

आदमी का जीवन हमेशा बहुत-सी आवश्यकताओं चीजों व कार्यों से जुड़ा हुआ है। जैसे नौकरी, शिक्षा, बैंकिंग, व्यवसाय अनिवार्य है। आज इन सभी से इन्फॉरमेशन एंड कम्युनिकेशन टेक्नोलॉजी के बिना जुड़ पाना या उपयोग कर पाना संभव नहीं है। अतः इन्फॉरमेशन हमारे जीवन का एक हिस्सा बन गया है। सामाजिक व व्यापारिक संचार, मनोरंजन व सूचना के स्त्रोत के रूप में इंटरनेट व कम्प्युटर पर हमारी निर्भरता ने नई ऊँचाइयों को बढ़ाया है, खासकर मोबाइल फोन, कम्प्युटर व इंटरनेट की बढ़ती लोकप्रियता से एक सोशल नेटवर्क का विकास हुआ है।


साइबर स्पेस सोशल नेटवर्किंग ने व्यक्तिगत सीमाएँ कम कर दी है। इस सोशल नेटवर्किंग युग में कोई भी छोटी या व्यक्तिगत जानकारी निजी नहीं रही। लोग अपने घर में बैठकर देश या विदेश के लोगों से मित्रता व वार्तालाप करते हैं। कई बार ऐसे लोगों से मित्रता करते है जिनके अस्तित्व या वास्तविक होने की भी पुष्टि नहीं होती। जो खतरनाक साबित हो सकता है। बच्चों द्वारा मुख्यतः ऑनलाइन फिल्म देखने, म्यूजिक डाउनलोड करने, गेम खेलने व स्कूल के प्रोजेक्ट सोशल नेटवर्क पर नये फ्रेंड बनाने में इंटरनेट व कम्प्यूटर का उपयोग किया जाता है।


साइबर लॉ से अंजान उपयोगकर्ता (यूजर्स) जी-मेल, फेसबुक, ट्विटर जैसी सोशल नेटवर्किंग साइट का उपयोग करना अच्छी बात है लेकिन फेसबुक और जी-मेल में 18 साल से कम उम्र के लोगों का अकाउंट बनाना वैद्यानिक रूप से सही नहीं है। जबकि वहीं स्थिति इससे उल्टी है। 14 से 17 साल तक के स्कूल स्टूडेंट अपना एक से ज्यादा अकाउंट बनाकर उपयोग करना सही समझते हैं एवं आनंदित होते हैं। कम उम्र में इंटरनेट की दुनिया में बढ़ते नाबालिकों के कदम ने बालकों को साइबर क्राइम का हिस्सा बना रही है।


एक दैनिक समाचार पत्र द्वारा 2014 में 200 छात्रों के बीच किये गये एक सर्वे में यह बात सामने आयी। वर्ष 2013 में 13 साल की बच्ची का फेक अकाउंट बनाने का एक मामला सामने आया था जिसमें कम्प्यूटर का उपयोग कर फर्जी व अश्लील तस्वीरें बनाकर बच्ची के बारे में गलत मैसेज डाले गये। बाल उत्पीड़न एवं मानहानि जैसे संगीन अपराध बच्ची के साथ हों, जिसके पास माता-पिता को भी मानसिक परेशानी का सामना करना पड़ा।


छात्रों द्वारा सोशल नेटविर्कंग

साइट्स पर फर्जी आईडी बनाना आम बात है। बच्चे भले ही शरारत के तौर पर दूसरे मित्र के नाम पर आई.डी. बनाते हों, पर सर्वे में बच्चों द्वारा यह बात स्वीकार की गयी। क्योंकि वे इस बात से अंजान हैं कि यह साइबर क्राइम है। कुछ बच्चों ने तो यह भी स्वीकार किया कि उनका फोटो व नाम का उपयोग कर किसी के द्वारा आई.डी. बनाकर चलायी जा रही है।


सर्वे में शामिल 88 प्रतिशत छात्रों ने माना की सभी का जी-मैल व फेसबुक अकाउंट होना चाहिये क्योंकि इससे फ्रेंडशिप के साथ ही नई जानकारियों से हम जागरूक होते हैं। हालांकि इन छात्रों को यह ज्ञात नहीं है कि 18 साल से कम उम्र के लोगों को आईडी बनाने की अनुमति नहीं है?


बच्चों के प्रति होने वाले साइबर क्राइम की संख्या में दिन प्रतिदिन वृद्धि हो रही है। दूसरी ओर 18 साल से कम उम्र के यूजर अभिभावकों की अनदेखी कर दूसरों का सोशल नेटवर्किंग अकाउंट उपयोग करते हैं। करीब 40 प्रतिशत छात्रों ने माना की अभिभावक चेटिंग के लिये मना करते हैं इसलिये हम अभिभावकों की आई.डी. का उपयोग करते हैं। वही 30 प्रतिशत ने माना कि अपने नाम से फेसबुक अकाउंट नहीं है लेकिन फ्रेंड्स (दोस्त) की आई.डी. पासवर्ड का उपयोग करते हैं।

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